Swami Vivekanand Ki Atmakatha | स्वामी विवेकानंद की आत्मकथा

आज का लेख हम स्वामी विवेकानंद की आत्मकथा(Swami Vivekanand Ki Atmakatha) के ऊपर है। इस लेख के जरिए हम उनके प्रेरणादायक जीवन के बारे में गहराई से जानेंगे और स्वामी विवेकानंद के अद्भुत जीवन की कहानी और उनके आध्यात्मिक ग्यान के आद्यात्मिक मूल्यों के बारे में भी पढ़ेंगे। स्वामी विवेकानंद की विचारशीलता का अद्भूत अनुभव करें और उनकी शिक्षाओं का विश्वभर में कैसे प्रभाव हुआ है, इसे खोजें।

Swami Vivekanand Ki Atmakatha

स्वामी विवेकानंद की आत्मकथा(Swami Vivekanand Ki Atmakatha)

स्वामी विवेकानंद भारत के महान दार्शनिक और आध्यात्मिक संत थे। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। बचपन में उनका नाम नरेंद्रनाथ था। बचपन से ही नरेन्द्र अत्यन्त तेज बुद्धि के थे। वे नटखट भी उतने ही थे। अपने साथी बच्चों के साथ वे खूब शरारत करते थे और अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे। उनके घर में रोज पूजा-पाठ होता था। धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण माता भुवनेश्वरी देवी को पुराण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था।

शिक्षा-दीक्षा

नरेंद्रनाथ ने 1871 में आठ साल की उम्र में ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया, जहां वे स्कूल गए। 1879 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन अंक प्राप्त किये। वह अपने परिवार के पहले ऐसे छात्र थे। नरेंद्रनाथ को बचपन से ही खेल-कूद और व्यायाम आदि में रूचि थी। 1881 में उन्होंने ललित कला की परीक्षा पास की और 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी की। वह पढ़ने में काफी तेज थे। उन्होंने कई विदेशी लेखकों को पढ़ा और उनका अनुवाद भी किया।

पैदल ही पूरे भारत की यात्रा

उन्होंने 25 वर्ष की अवस्था में गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया था। इसके बाद उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। विवेकानंद ने 31 मई 1893 को अपनी यात्रा शुरू की और जापान के कई शहरों (नागासाकी, कोबे, योकोहामा, ओसाका, क्योटो और टोक्यो समेत) का दौरा किया। वे चीन और कनाडा होते हुए अमेरिका के शिकागो पहुंचे सन्‌ 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म सभा हो रही थी। स्वामी विवेकानन्द उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे।

अमेरिका में भाषण

स्वामी विवेकानंद ने इस महासभा में भारतीय संस्कृति और योग के महत्व को लेकर अद्भुत भाषण दिया। इस भाषण से उनकी ख्याति और बढ़ गई। हर जगह उनका ही नाम लिया जाने लगा। कहा जाता है कि जिस भेष में वह धर्म सभा में पहुंचे थे, पश्चात्य संस्कृति के सभी लोग उनका मजाक बना रहे थे। लेकिन भाषण के बाद पूरी सभा में करीब दो मिनट तक सभी दर्शक ताली बजाते रहे। इस सभा के बाद ही नरेंद्रनाथ से उनका नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना

स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे और उन्होंने 1897 ई. में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। इसका मुख्यालय कोलकाता के निकट बेलुड़ में है। इसकी स्थापना के केंद्र में वेदान्त दर्शन का प्रचार-प्रसार करना है। रामकृष्ण मिशन दूसरों की सेवा और परोपकार को कर्म योग मानता है जो कि हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है।

सफलता की सीख

एक बार स्वामी विवेकानंद अपने आश्रम में सो रहे थे। तभी एक व्यक्ति उनके पास आया और आते ही स्वामी विवेकानन्द के चरणों में गिर पड़ा। उसने बोला महाराज मैं अपने जीवन में खूब मेहनत करता हूं। हर काम खूब मन लगाकर भी करता हूं। फिर भी आज तक मैं कभी सफल व्यक्ति नहीं बन पाया। उस व्यक्ति की बातें सुनकर स्वामी विवेकानंद ने कहा ठीक है। आप मेरे इस पालतू कुत्ते को थोड़ी देर तक घुमाकर लाये तब तक आपके समस्या का समाधान ढूंढ़ता हूं।

इतना कहने के बाद वह व्यक्ति कुत्ते को घुमाने के लिए चला गया। फिर कुछ समय बीतने के बाद वह वापस आया। तब स्वामी विवेकानंद ने उस व्यक्ति से पूछा की यह कुत्ता इतना हांफ क्यों रहा है, लेकिन तुम थोड़े से भी थके हुए नहीं लग रहे हो आखिर ऐसा क्या हुआ ?

इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि मैं तो सीधा अपने रास्ते पर चल रहा था, जबकि यह कुत्ता इधर-उधर रास्ते भर भागता रहा। यह कुछ भी देखता तो उधर ही दौड़ जाता था। इसलिए यह हांफ रहा है। इसपर स्वामी ने मुस्कुराते हुए कहा बस यही तुम्हारे प्रश्नों का जवाब है। तुम्हारी सफलता की मंजिल तो तुम्हारे सामने ही होती है। किंतु तुम अपने मंजिल के बजाय इधर-उधर भागते हो। इससे तुम अपने जीवन में कभी सफल नही हो पाए। यह बात सुनकर उस व्यक्ति को समझ में आ गया कि यदि सफल होना है तो हमे अपने मंजिल पर ध्यान देना चाहिए।

विदेशी महिला हुई प्रभावित

उनके बारे में एक कथा काफी प्रचलित है। उनका भाषण सुनकर एक विदेशी महिला काफी प्रभावित हुई और उनके पास आकर बोली कि वह उनसे शादी करना चाहती है। इससे उन्हें एक पुत्र होगा, जो आपकी तरह ही ओजस्वी होगा। चूंकि स्वामी विवेकानंद संन्यासी थे और वह शादी नहीं कर सकते थे। तब उन्होंने महिला से कहा कि आप मुझे अपना पुत्र बना लो। इससे मेरा संन्यास भी नहीं टूटेगा और आपको पुत्र भी मिल जाएगा। इससे प्रभावित होकर महिला उनके चरणों में गिर पड़ी और उन्हें ईश्वर के सामान बताया।

मृत्यु

स्वामी विवेकानंद ने 1902 में निरातंकारानंद स्वामी के नाम से संन्यास लेकर 39 साल की आयु में स्वर्ग सिधार गए। उनकी शिक्षाएं और विचारधारा आज भी हमारे बीच जिन्दा है और उन्हें आदर्श साधक, विचारक और महान योगी के रूप में याद किया जाता है। स्वामी विवेकानंद जी को धर्म, इतिहास, दर्शन, कला, सामाजिक विज्ञान और साहित्य का ज्ञाता कहा जाता है। शिक्षा के साथ ही वे भारतीय शास्त्रीय संगीत का भी ज्ञान रखते थे। स्वामी जी के अनमोल विचारों और कार्य युवाओं के लिए प्रेरणा है।

राष्ट्रीय युवा दिवस

हर साल स्वामी विवेकानंद की जयंती के दिन यानी 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। भारत सरकार द्वारा स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा 1984 में हुई थी।

निष्कर्ष

स्वामी विवेकानंद का जीवन अपने आप में एक मिसाल है, उनसे हमे बहुत कुछ सिखने को मिलता है। वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने सिर्फ अपने देश में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में अपनी चाप छोड़ी है। ऐसे महात्मा को हम नमन करते हैं।


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